Dua In Hindi
रोज़ाना की नमाज़ों के सामान्य ताक़ी’बात – मफ़ा’तीह और बाक़ी’यतुस सालेहात से लिया गया
रोज़ाना की वाजिब नमाज़ों के बाद, अहलेबैत द्वारा सिखाई गयी दुआ या पवित्र क़ुरान क़ो पढ़ना “ताक़ी’ब” कहलाता है! जिसका लफ़’ज़ी मानी “समय बिताना” है ! रोज़ाना की नमाज़ के बाद ताक़ी’बात पढ़ना “सुन्नत मुवक’किदाह” (जिसे ज़ोरदार तरीक़े सिफारिश की गयी हो)
ईमाम बाक़र (अ:स) ने कहा के वाजिब नमाज़ के बाद strong>तस्बीह-ए-फ़ातिमा से बेहतर कोई दुआ नहीं है! अगर ईस से बेहतर कोई और दुआ होती जो अधिक प्रभावी, और अल्लाह की हम्द क़ो कोई दूसरा तरीका होता तो पैग़म्बर (स:अ:व:व) इसे अपनी प्यारी बेटी जनाब फ़ातिमा ज़हरा (स:अ) क़ो ज़रूर बताते! ईमाम जाफ़र सादीक़ (अ:स) ने कहा : तस्बीहे फ़ातिमा क़ो हर नमाज़ के बाद पढ़ना, हज़ार बेहतर कामों से बढ़कर है!:-
अल्लाहो अकबर (34 बार) अलहम्दु लिल्लाह (33 बार) सुभान अल्लाह (33 बार) |
b) तस्बीह पढ़ने के बाद चाहिए की एक बार ला इलाहा इलल-लाह कहे لاَ إِلٰهَ إِلاَّ ٱللَّهُ
c) ईमाम बाक़र (अ:स) फ़रमाते हैं की अगर कोई अपने वाजिब नामज़ पूरी कर ले फिर 3 बार यह आयत पढ़े तो अल्लाह उसके सारे गुनाहों क़ो माफ़ कर देगा!:
”अस’तग़ -फ़ा’रल्लाह अल’लज़ी ला इलाहा इल्ला हुवल हय्यल क़य’युमो ज़ुल’जलाल ए वल इक्रामे व आतुबे इलैह मै ईस ख़ुदा से बख्शीश चाहता हूँ जिसके सिवा कोई माबूद नहीं, वो जिंदा व पा’इन्दा है (हमेशा ज़िंदा रहने वाला है), और मै इसके हुज़ूर तौबा करता हूँ |
ईमाम सादीक़ (अ:स) फ़रमाते हैं की अगर कोई शख्स अपनी वाजिब नमाज़ों के बाद 30 बार “सुभान अल्लाह” पढ़े तो अल्लाह उसके सारे गुनाहों क़ो माफ़ कर देगा!
पहला अध्याय – मफ़ातीह – नमाज़ के बाद की सामान्य दुआएं
निम्नलिखित दुआएं नमाज़ के बाद पढ़ने की ताकीद की गयी है और इसे शेख़ अल-तुसी की किताब मिस्बाह अल-मुता’हज्जिद और दूसरी किताबों से भी लिया गया है!.
जब आप तस्लीम पढ़ लें (जो नमाज़ का आखरी हिस्सा सलाम होता है, औरे नमाज़ पूरी कर लें तो 3 बार तकबीर (अल्लाहो अकबर) पढ़ें, जिसका मानी है अल्लाह बहुत बड़ा है! और यह अपना हाथ दुआ के लिये अपने कान तक उठा कर पढ़ें, फिर तकबीर के बाद यह दुआ पढ़ें!:
لاَ إِلٰهَ إِلاَّ ٱللَّهُ | ला इलाहा इलल लाहू | ख़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं; |
إِلَهاً وَاحِداً | इलाहन वाहिदन | वोही माबूद यगाना है; |
وَنَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ | व नहनु लहू मुस्लिमुना | और हम ईसके फर्माबरदार हैं. |
لاَ إِلٰهَ إِلاَّ ٱللَّهُ | ला इलाहा इलल लाहू | ख़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं |
وَلاَ نَعْبُدُ إِلاَّ إِيَّاهُ | व ला ना बुदू इल्ला इय्याहू | हम बस इसकी इबादत करते हैं, |
مُخْلِصينَ لَهُ ٱلدِّينَ | मुख़’ली’सीना लहू’द दीना | इसके दीन के साथ मुख़लिस हैं,, |
وَلَوْ كَرَهَ ٱلْمُشْرِكُونَ | व लौ करिहल मुशरिकुना | ख्वाह मुशरेकीन क़ो ना‘गवार हि लगे. |
لاَ إِلٰهَ إِلاَّ ٱللَّهُ | ला इलाहा इलल लाहू | ख़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं; |
رَبُّنَا وَرَبُّ آبَائِنَا ٱلاوَّلِينَ | रब्बुना व रब्बु आबा’इना अल-अव्वालीना | जो हमारा और हमारे आबा-ओ-अजदाद का रब है. |
لاَ إِلٰهَ إِلاَّ اللَّهُ | ला इलाहा इलल लाहू | ख़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं ; |
وَحْدَهُ وَحْدَهُ وَحْدَهُ | वह’दहु वह’दहु वह’दहु | जो यकता है.वाहिद है, एक है, |
انْجَزَ وَعْدَهُ | अन’जज़ा व’अ दहु | इसने अपना वादा पूरा किया,, |
وَنَصَرَ عَبْدَهُ | व नसरा अब’दहु | अपने बन्दे की नुसरत फ़रमाई , |
وَاعَزَّ جُنْدَهُ | व अ-अज़-अ जुन’दहु | अपने लश्कर क़ो ग़ालिब किया , |
وَهَزَمَ ٱلاحْزَابَ وَحْدَهُ | व हज़ा’मल अह’ज़ाबा वह’दहु | और अकेले हि जत्थों क़ो मार भगाया,. |
فَلَهُ ٱلْمُلْكُ وَلَهُ ٱلْحَمْدُ | फ़’लहूल मुल्को व लहुल हम्द | बस मुल्क इसीका और हम्द इसी के लिये है. |
يُحْيي وَيُميتُ | यूह’यी व युम’इतु | वो ज़िंदगी देता है और (दूसरों क़ो) मारता है, |
وَيُميتُ وَيُحْيي | व यु’मितु व यूह’यी | और (तब) मौत देता है और मुर्दों से जिंदा करता है |
وَهُوَ حَيٌّ لاَ يَمُوتُ | व हुवा ह’य्यून व या’मुतु | वो जिंदा है इसे मौत नहीं. |
بِيَدِهِ ٱلْخَيْرُ | बिया’दिहिल खैरू | सारी ख़ैर इसी के हाथ में है |
وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْء قَديرٌ | व हुवा अला कुल्ली शै’ईन क़’दीरुन | और वो हर चीज़ पर क़ादिर है. |
और फिर यह कहें:
मै ईस ख़ुदा से बख्शीश चाहता हूँ जिसके सिवा कोई माबूद नहीं, | अस’तग़ फ़िरूल लाहा’ अल-लज़ी ला इलाहा इल्ला हुवा | اسْتَغْفِرُ ٱللَّهَ ٱلَّذِي لاَ إِلٰهَ إِلاَّ هُوَ |
वो जिंदा व पा’इन्दा है (हमेशा ज़िंदा रहने वाला है), और मै इसके हुज़ूर तौबा करता हूँ | अल-हय्यु अल-क़’युमो व अतुबू इलैही | ٱلْحَيُّ ٱلْقَيُّومُ وَاتُوبُ إِلَيْهِ |
और फिर यह कहें:
اَللَّهُمَّ ٱهْدِنِي مِنْ عِنْدِكَ | अल्लाहुम्मा इह’दिनी मिन इंदीका | ऐ अलह अपनी जानिब से मेरी रहनुमाई फ़रमा और, |
وَافِضْ عَلَيَّ مِنْ فَضْلِكَ | व’अफ़िज़ अलय्या मिन फ़ज़’लिका | मुझ पर अपना फ़ज़ल-ओ-करम फ़रमा, |
وَٱنْشُرْ عَلَيَّ مِنْ رَحْمَتِكَ | व’अंशुर अलय्या मिन रह’मतिका | और मुझ पर अपनी रहमत फैला दे, |
وَانْزِلْ عَلَيَّ مِنْ بَرَكاتِكَ | व’अन्ज़ील अलय्या मिन बरकातिका | और मुझ पर अपनी बरकात नाज़िल फ़रमा |
سُبْحَانَكَ لاَ إِلٰهَ إِلاَّ انْتَ | सुभ’आनाका ला इलाहा इल्ला अन्ता | तेरी ज़ात पाक है, सिवाए तेरे कोई माबूद नहीं,. |
ٱغْفِرْ لِي ذُنُوبِي كُلَّهَا جَمِيعاً | अग़’फ़िरली ज़ुनुबी कुल्ली’हा जमी’अन | मेरे सारे के सारे गुनाह माफ़ फ़रमा , |
فَإِنَّهُ لاَ يَغْفِرُ ٱلذُّنُوبَ كُلَّهَا جَمِيعاً إِلاَّ انْتَ | फ़’इन्ना’हु ला युग़फ़िरु अज़’ज़ुनुबा कुल्ली’हा जमी’अन इल्ला अन्ता | के तेरे सिवा कोई गुनाह माफ़ नहीं कर सकता. |
اَللَّهُمَّ إِنِّي اسْالُكَ مِنْ كُلِّ خَيْرٍ احَاطَ بِهِ عِلْمُكَ | अल्लाहुम्मा इन्नी अस’अलुका मिन कुल्ली खैरिनअह’आता बिही इल्मुका | ऐ अल्लाह, तुझ से हर उस ख़ैर का तलबगार हूँ जिसका तेरा ईल्म अहाता किये हुए हैं |
وَاعُوذُ بِكَ مِنْ كُلِّ شَرٍّ احَاطَ بِهِ عِلْمُكَ | व अ’उज़ो बिका मिन कुल्ली शर’रिन अह’आता बिही इल्मुका | और, हर ईस शर से तेरी पनाह चाहता हूँ जिस पर तेरा ईल्म मोहय्यत है. |
اَللَّهُمَّ إِنِّي اسْالُكَ عَافِيَتَكَ في امُوري كُلِّهَا | अल्लाहुम्मा इन्नी अस’अलुका आ’फ़ि’यता-का फ़िउमूरी कुल्लिहा | ऐ अल्लाह मै अपने तमाम उमूर में तुझ से आफ़ियत तलब करता हूँ |
وَاعُوذُ بِكَ مِنْ خِزْيِ ٱلدُّنْيَا وَعَذَابِ ٱلآخَرَةِ | व अ’उज़ो-बिका मिन खिज़’यी अल-दुन्या व अज़ाबी’ल आखी’रति | मै दुन्या की रुसवाई और आख़ेरत के अज़ाब से तेरी पनाह चाहता हूँ. |
وَاعوُذُ بِوَجْهِكَ ٱلْكَرِيـمِ | व अ’उज़ो बी’वज-हिकल करीमी | मै तेरी करीम ज़ात और बुलंद मुक़ाम के, |
وَعِزَّتِكَ ٱلَّتِي لاَ تُرَامُ | व ईज़’ज़तिकल लती ला तुरामु | जिस तक किसी की रसाई नहीं , |
وَقُدْرَتِكَ ٱلَّتِي لاَ يَمْتَنِعُ مِنْهَا شَيْءٌ | व क़ुद’रतिकल लती ला यम’तनी’उ मिन्हा शै’युन | और तेरी क़ुदरत के जिस के सामने कोई चीज़ नहींठहरती |
مِنْ شَرِّ ٱلدُّنْيَا وَٱلآخِرَةِ | मिन शर’री-अल दुन्या वल आखिरति | ईन के ज़रिये दुन्या व आख़ेरत के शर , |
وَمِنْ شَرِّ ٱلاوْجَاعِ كُلِّهَا | व मिन शर’री-अल औजा’ई कुल्लिहा | और तमाम दर्द व अज़ीयत, |
وَمِنْ شَرِّ كُلِّ دَابَّةٍ انْتَ آخِذٌ بِنَاصِيَتِهَا | व मिन शर-री कुल्ली दाब’बतीन अन्ता आखिज़ुन बिन अस्या’तिहा | और हर हैवान के शर से पनाह चाहता हूँ जो तेरे क़ब्ज़ा-ए-क़ुदरत में है. |
إنَّ رَبِّي عَلَىٰ صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ | इन्ना रब्बी-अला सिरातिन मुस’तक़ीमिन | बेशक मेरे रब का रास्ता मुस्तक़ीम है |
وَلاَ حَوْلَ وَلاَ قُوَّةَ إِلاَّ بِٱللَّهِ ٱلْعَلِيِّ ٱلْعَظِيمِ | व ला हौला व ला क़ु-वता इल्ला बिल’लाहिल अली’युल अज़ीम | और ताक़त व क़ुव्वत बस खुदाये अज़ीम व बरतरी से मिलती है |
تَوَكَّلْتُ عَلَىٰ ٱلْحَيِّ ٱلَّذِي لاَ يَمُوتُ | तवा’कल्तु अला अल-हय्यी अल-लज़ी ला य-मुतो | और मेरा भरोसा ईस जिंदा (ख़ुदा) पर है, जिस के लिये मौत नहीं. |
وَٱلْحَمْدُ لِلَّهِ ٱلَّذِي لَمْ يَتَّخِذْ وَلَداً | वल-हम्दु लील-लाहे अल-लज़ी लम यत्ता’खिज़ु वला’दन | हम्द ईस ख़ुदा के लिये जिस ने न किसी क़ो फ़र्ज़न्द बनाया , |
وَلَمْ يَكُنْ لَهُ شَريكٌ فِي ٱلْمُلْكِ | व लम यकून लहू शरिया-कुन फ़ि-अल’मुल्की | न कोई इसके मुल्क में शरीक है और, |
وَلَمْ يَكُنْ لَهُ وَلِيٌّ مِنَ ٱلذُّلِّ | व लम यकून लहू वली’युन मिना अल-द’दुल्ली | न इसके आजिज़ी के सबब कोई इसका मददगार है. |
وَكَبِّرْهُ تَكْبيراً | व कब्बिर’हु तक’बीरन | और तुम इसकी बड़ाई का इज़हार करो !, और कहो “अल्लाहो अकबर” |
फिर तस्बीहे-ज़हरा पढ़ें (जो की यहाँ किताब बाक़ीयातुस सालेहात में लिखा है).
इसके पहले की आप अपने नमाज़ की जगह से उठें, ईस दुआ क़ो दस (10) बार पढ़ें:
اشْهَدُ انْ لاَ إِلٰهَ إِلاَّ ٱللَّهُ | अश’हदों अन ला इलाहा इलल लाहो | मै गवाही देता हूँ के ख़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं ; |
وَحْدَهُ لاَ شَريكَ لَهُ | वह’दहु ला शरीका लहू | जो यकता है, कोई इसका शरीक नहीं |
إِلَهاً وَاحِداً | इलाहन वाहिदन | वो माबूद यगाना,; |
احَداً فَرْداً صَمَداً | अहदन फ़रदन समदन | यकता, वाहिद (और) बे-नेयाज़ है |
لَمْ يَتَّخِذْ صَاحِبَةً وَلاَ وَلَداً | लम यत्ता-खिज़ साही’बतन व ला वलादन | के जिसकी न बीवी है और न ही औलाद है! |
यह कहा गया है की ईस दुआ क़ो ख़ासकर फ़जर, शाम (ईशा) के नमाज़ के बाद और सूरज उगने और डूबने के वक़्त पढ़ने से बहुत सवाब हासिल होता है!
और फिर यह कहें:
سُبْحَانَ ٱللَّهِ كُلَّما سَبَّحَ ٱللَّهَ شَيءٌ | सुभान अल्लाहि कुल’लमा सब’बहा अल्लाहा शै’युन | पाक है ख़ुदा – जब भी कोई चीज़ |
وَكَمَا يُحِبُّ ٱللَّهُ انْ يُسَبَّحَ | व कमा युहिब’बू अल्लाहू अन युसब’बहा | ख़ुदा की ऐसी तस्बीह करे जिसे वो पसंद करता है, |
وَكَمَا هُوَ اهْلُهُ | व कमा हुवा अहलुहू | और जिस तस्बीह का वो अहल है, |
وَكمَا يَنْبَغِي لِكَرَمِ وَجْهِهِ وَعِزِّ جَلاَلِهِ | व कमा यन’बग़ी ले करम’ई वज’हे’ई व ईज़’ज़ी जला’लिही | और जैसी तस्बीह इसकी करीम ज़ात और जलालत व शान के लायेक़ है. |
وَٱلْحَمْدُ لِلَّهِ كُلَّمَا حَمِدَ ٱللَّهَ شَيءٌ | वल’हम्दु लील’लाहे कुल्ला’मा हमीदल लाहा शै’युन | हम्द ख़ुदा के लिये ही है, जब भी कोई चीज़ इसकी ऐसी हम्द करे , |
وَكَمَا يُحِبُّ ٱللَّهُ انْ يُحْمَدَ | व कमा युहिब’बूल लाहो अन यूह’मदा | की जैसी हम्द क़ो वो पसंद करता है , |
وَكَمَا هُوَ اهْلُهُ | व कमा हुवा अहलुहू | और जैसी हम्द का वो अहल है , |
وَكَمَا يَنْبَغِي لِكَرَمِ وَجْهِهِ وَعِزِّ جَلاَلِهِ | व कमा यन’बग़ी ली’करम’ई वज’हीही व ईज़’ज़ी जला’लिही | के जो ईस करीम ज़ात और इज़्ज़त व जलाल के लायेक़ है. |
وَلاَ إِلٰهَ إِلاَّ ٱللَّهُ كُلَّمَا هَلَّلَ ٱللَّهَ شَيءٌ | व ला इलाहा इलल लाहो कुल’लमा हल’ल-लल लाहो शै’युन | ख़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं जब भी कोई चीज़ इसका ऐसे ज़िक्र करे , |
وَكَمَا يُحِبُّ ٱللَّهُ انْ يُهَلَّلَ | व कमा युहिब’बूल लाहू अन यु-हल-लला | जैसे ज़िक्र क़ो ख़ुदा पसंद करता है, |
وَكَمَا هُوَ اهْلُهُ | व कमा हुवा अह’लहू | वो ईस का अहल है, |
وَكَمَا يَنْبَغِي لِكَرَمِ وَجْهِهِ وَعِزِّ جَلاَلِهِ | व कमा यन’बग़ी ले-करम’ई वज’हीही व ईज़’ज़ी जला’लिही | और जो ज़िक्र इसकी बुज़ुर्गी और इज़्ज़त व जलाल के शायाने शान है. |
وَٱللَّهُ اكْبَرُ كُلَّمَا كَبَّرَ ٱللَّهَ شَيءٌ | वल’लाहो अकबरो कुल’लमा कब’बरा-लाहा शै’युन | ख़ुदा बुज़ुर्ग्तर है, जब भी कोई चीज़ इसकी ऐसी बुज़ुर्गी ब्यान करे , |
وَكَمَا يُحِبُّ ٱللَّهُ انْ يُكَبَّرَ | व कमा युहिब’बू अल-लाहू अन यु’कब-बरा | जैसी बुज़ुर्गी क़ो वो पसंद करता है |
وَكَمَا هُوَ اهْلُهُ | व कमा हुवा अह’लहू | जिस का वो अहल है ,, |
وَكَمَا يَنْبَغِي لِكَرَمِ وَجْهِهِ وَعِزِّ جَلاَلِهِ | व कमा यन’बग़ी ले-करम’ई वज’हीही व ईज़’ज़ी जला’लिही | और जो बुज़ुर्गी इसकी ऊंची शान और इज़्ज़त व जलाल के लायेक़ है. |
سُبْحَانَ ٱللَّهِ | सुभान अल्लाहे | पाक है ख़ुदा ; |
وَٱلْحَمْدُ لِلَّهِ | वल हम्दो लील’लाहे | और हम्द इसी के लिये है ; |
وَلاَ إِلٰهَ إِلاَّ ٱللَّهُ | व ला इलाहा इलल लाहो | और ख़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं!; |
وَٱللَّهُ اكْبَرُ | वल’लाहो अकबर | और ख़ुदा हर नेमत पर बुज़ुर्ग्तर है |
عَلَىٰ كُلِّ نِعْمَة انْعَمَ بِهَا عَلَيَّ | अला कुल्ली नि-मतीन अन-अमा बिहा अलय्या | जो इसने मुझे दी |
وَعَلىٰ كُلِّ احَدٍ مِنْ خَلْقِهِ | व अला कुल्ली अह्दीन मिन ख़ल’क़ेही | और जो गुज़री हुई मख्लूक़ क़ो दी , |
مِمَّنْ كَانَ اوْ يَكُونُ إِلَىٰ يَوْمِ ٱلْقِيَامَةِ | मिम्मन काना औ य’कुनू इला यौमिल क़ीया’मते | और ता क़यामत आने वाली मख्लूक़ क़ो मिलती रहेगी. |
اَللَّهُمَّ إِنِّي اسْالُكَ انْ تُصَلِّيَ عَلَىٰ مُحَمَّد وَآلِ مُحَمَّد | अल्ला-हुम्मा इन्नी अस-अलुका अन-तू सल्ले अला मुहम्मदीन व आले मुहम्मदीन | ऐ अल्लाह! मै तुझ से दरख्वास्त करता हूँ की मुहम्मद (स:अ:व:व) व आले मुहम्मद (अ:स) पर रहमत फ़रमा! |
وَ اسْالُكَ مِنْ خَيْرِ مَا ارْجُو | व अस-अलुका मिन खैरिल म अरजु | मै तुझ से वो ख़ैर तलब करता हूँ |
وَخَيْرِ مَا لاَ ارْجُو | व खैरी मा ला अरजु | जिसका उम्मीदवार हूँ .और वो ख़ैर भी जिसकी आरज़ू नहीं की, |
وَ اعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ مَا احْذَرُ | व अ-ऊज़ो’बिका मिन शर’री मा अह’ज़रु | और हर ईस शर से तेरी पनाह चाहता हूँ, |
وَمِنْ شَرِّ مَا لاَ احْذَرُ | व मिन शर-री मा ला अह’ज़रु | जिस का मुझे खौफ़ है और जिसका खौफ़ नहीं!. |
फिर, यह क़ुरानी आयतें पढ़ें:
(1) सुरः अल-हम्द (सुरः फ़ातिहा. 1), (2) आयत अल-कुर्सी (2:255-257), (3) शहादत की आयत (आयत अल-शहादा; 3:18-19), (4) मुल्क की आयत (सुरः अल-मुल्क; 3:26-27), और (5) मातहती की आयत (आयत अल-सखारह 7:54-56).
तब, तीन बार सुरः अल-सफ़’फ़ात (37:180-183) पढ़ें, जो ईस प्रकार है :
سُبْحَانَ رَبِّكَ رَبِّ ٱلْعِزَّةِ عَمَّا يَصِفُونَ | सुभाना रब’बिका रब’बी अल-ईज़’ज़ती अमा यासी’फ़ूना | तुम्हारा साहिबे इज़्ज़त परवरदिगार ईन बातों से पाक है जो यह लोग कहा करते हैं . |
وَسَلاَمٌ عَلَىٰ ٱلْمُرْسَلِينَ | व सलामुन अला अल-मुर’सलीना | और सलाम हो सभी अम्बिया (अ:स) पर |
وَٱلْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلْعَالَمِينَ. | वल हम्दु लील’लाहे रब’बी-अल आ’लमीना | और हम्द है ख़ुदा की तो आलमीन का रब है! |
तब, यह दुआ 3 बार दोहरायें:
اَللَّهُمَّ صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ | अल्ला’हुम्मा सल्ली अला मुहमादीन व आली मुहम्मदीन | ऐ अल्लाह रहमत फ़रमा मुहम्मद (स:अ:व:व) व आले मुहम्मद (अ:स) पर |
وَٱجْعَلْ لِي مِنْ امْرِي فَرَجاً وَمَخْرَجاً | वज अल ली मिन अमरी फरजन व मख़-रजन | और मेरे हर काम में कशाइश व सहूलत क़रार दे |
وَٱرْزُقْنِي مِنْ حَيْثُ احْتَسِبُ وَمِنْ حَيْثُ لاَاحْتَسِبُ | व अर-ज़ुक़नी मिन हैसु अह-तसीबू व मिन हैसो ल अह-तसीबू | और मुझे रिज़क़ दे जहां से तवाक़क़ो है और जहाँ सेतवाक़क़ो नहीं है! |
यह दुआ हज़रत जिब्राइल (अ:स) ने नबी हज़रत यूसुफ़ (अ:स) क़ो उस वक़्त बताई थी जब वो क़ैद में थे!.
तब अपनी दाढ़ी अपने दायें हाथ से पकड़ें, अपना बायाँ हाथ आसमान की तरफ़ उठाएं और सात बार यह दुआ पढ़ें:
يَا رَبَّ مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ | या रब’बा मुहम्मदीन व आले मुहम्मदीन | ऐ मुहम्मद (स:अ:व:व) व आले मुहम्मद (अ:स) के रब! |
صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ | सल’लल लाहो मुहम्मदीन व आली मुहम्मदीन | मुहम्मद (स:अ:व:व) व आले मुहम्मद (अ:स) परअपनी रहमत फ़रमा |
وَعَجِّلْ فَرَجَ آلِ مُحَمَّدٍ | व अज’जिल फ़-रजा आली मुहम्मदीन | और आले मोहम्मद (अ:स) क़ो जल्द कुशादगी अताफ़रमा! |
बगैर अपनी जगह से हिले हुए, ईस दुआ क़ो ३ बार पढ़ें:
يَا ذَا ٱلْجَلاَلِ وَٱلإِكْرَامِ | या ज़ुल’जलाल वल इकराम | ऐ इज़्ज़त व जलाल वाले ख़ुदा!, |
صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ | सल’लल लाहो मुहम्मदीन व आली मुहम्मदीन | मुहम्मद (स:अ:व:व) व आले मुहम्मद (अ:स) पर अपनी रहमत नाज़िल फ़रमा, |
وَٱرْحَمْنِي وَ اجِرْنِي مِنَ ٱلنَّارِ | व अर-हमनी व अजिरनी मिन-अलन-नार | मुझ पर रहम कर और जहन्नम की आग से पनाह मेंरख! |
सुरः अख़’लास (अल-तौहीद 112) क़ो 12 बार पढ़ने के बाद, नीचे लिखी हुई दुआ क़ो पढ़ें
اَللَّهُمَّ إِنِّي اسْالُكَ بِٱسْمِكَ ٱلْمَكْنُونِ ٱلْمَخْزُونِ | अल्ला-हुम्मा इन्नी अस-अलोका बिसमिका अल-मक्नूनी अल-मख़’ज़ूनी | ऐ अल्लाह! मै तेरे पोशीदा, मख़ज़ून, , |
ٱلطَّاهِرِ ٱلطُّهْرِ ٱلْمُبَارَكِ | अल-ताहिरी अल-तुहरी अल-मुबा’रकी | पाक और पाक करने वाले |
وَ اسْالُكَ بِٱسْمِكَ ٱلْعَظِيمِ | व अस-अलुका बिसमिका अल-अज़ीमी | बा-बरकत नाम के साथ सवाल करता हूँ, और तेरेबुल्न्द्तर नाम |
وَسُلْطَانِكَ ٱلْقَدِيـمِ | व सुल्तानिका अल-क़’दीमी | और क़दीम सल्तनत के वास्ते से सायेल हूँ के |
يَا وَاهِبَ ٱلْعَطَايَا | या वाहिबा अल-अताया | ऐ अनमोल नेमतें देने वाले |
وَيَا مُطْلِقَ ٱلاسَارَىٰ | व या मूल’तीक़ा अल-उसारा | ऐ कैदियों क़ो रिहाई अता करने वाले |
وَيَا فَكَّاكَ ٱلرِّقَابِ مِنَ ٱلنَّارِ | व या फ़क’काका अल-रीक़ाबी मिन’अल नारी | ऐ बन्दों क़ो जहन्नम से छुटकारा देने वाले |
اسْالُكَ انْ تُصَلِّيَ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ | अस-अलुका अन तू’सल्ले अला मुहम्मदीन व आले मुहम्मदीन | मै तुझ से सवाल करता हूँ की मुहम्मद (स:अ:व:व) व आले मुहम्मद (अ:स) पर रहमत फ़रमा |
وَ انْ تُعْتِقَ رَقَبَتِي مِنَ ٱلنَّارِ | व अन तू’तीक़ा रक़ा’बती मिन’अल नारी | और मेरी गर्दन क़ो आग से आज़ाद कर दे |
وَ انْ تُخْرِجَنِي مِنَ ٱلدُّنْيَا سَالِماً | व अन-तूख़’री जनी मिन-अल-दुआन्या सालेमन | और मुझे दुन्या से सालिम ईमान के साथ ले जा, |
وَتُدْخِلَنِي ٱلْجَنَّةَ آمِناً | व अन-तुदखि’लनी अल-जन्नता आमेनन | और अमन व अमान से मुझे जन्नत में दाख़िल फ़रमा , |
وَ انْ تَجْعَلَ دُعَائِي اوَّلَهُ فَلاَحاً | व अन तज अला दु’आई अव्वालाहू फ़’लाहन | और मेरी दुआ के अव्वल क़ो फ़लाह |
وَ اوْسَطَهُ نَجَاحاً | व औ’सताहू नजाहन | और औसत क़ो कामयाबी और |
وَآخِرَهُ صَلاَحاً | व आखिरहू सलाहन | आख़िर क़ो बेहतरी का मोजब बना दे! |
إِنَّكَ انْتَ عَلاَّمُ الْغُيُوبِ | इन्नका अन्ता अल्लामुल-गैयूबे | बेशक तू हर ग़ैब क़ो खूब जानता है! |
अल-सहीफ़ा अल-अलाविया (ईमाम अली के दुआओं का खज़ाना) के अनुसार नीचे लिखी हुई दुआ क़ो वाजिब नमाज़ के बाद पढ़ने की ताकीद की गयी है:
يَا مَنْ لاَ يَشْغَلُهُ سَمْعٌ عَنْ سَمْعٍ | या मन ला यश’ग़-लहू सम’उन अन सम’ईन | ऐ वो (ख़ुदा) जिस के लिये एक बात सुनना दूसरी बात सुनने से माने’अ नहीं ! |
وَيَا مَنْ لاَ يُغَلِّطُهُ ٱلسَّائِلُونَ | व या मन ला यु’ग़ल-ल्ताहू अल-साए’लूना | और सायेलों की कसरत ग़लती में नहीं डालती, |
وَيَا مَنْ لاَ يُبْرِمُهُ إِلْحَاحُ ٱلْمُلِحِّينَ | व या मन ला युब’रे’मुहू ईल-हाहू अल-मुलिह’हीना | ऐ वो ज़ात जिसे इसरार करने वालों का इसरार तंगदिल नहीं करता |
اذِقْنِي بَرْدَ عَفْوِكَ | अ’ज़ीक़-नी बरदा अफ़’विका | अपने अफ़ु व दर-गुज़र की बदौलत मुझे |
وَحَلاَوَةَ رَحْمَتِكَ وَمَغْفِرَتِكَ | व हला’वता रह’मतिका व मग़’फ़ी-रतिका | अपनी रहमत व बख्शीश की लज्ज़त चखा दे! |
आप यह भी दुआ पढ़ सकते हैं!
إِلٰهِي هٰذِهِ صَلاَتِي صَلَّيْتُهَا | इलाही हा’ज़िहिस सलाती सल’लै तुहा | ऐ अल्लाह! जो मैंने नमाज़ पढ़ी है |
لاَ لِحَاجَة مِنْكَ إِلَيْهَا | ला लीहा’जतिन मिनका इलैहा | यह न इसके लिये है की तुझे इसकी हाजत थी |
وَلاَ رَغْبَةٍ مِنْكَ فِيهَا | व ला रग़’बतीन मिनका फ़ीहा | और न इसके लिये है की तुझे ईस में रग़बत थी; |
إِلاَّ تَعْظِيمَاً وَطَاعَةً | इल्ला ता’ज़ीमन व ता’अतन | हाँ यह सिर्फ़ तेरी ताज़ीम व इता’अत और , |
وَإِجَابَةً لَكَ إِلَىٰ مَا امَرْتَنِي بِهِ | व इजा’बतन लका इला मा अमर्तनी बिही | तेरे हुक्म की इत्ता’बा’अ है जो तुने मुझे दिया!. |
إِلٰهِي إِنْ كَانَ فِيهَا خَلَلٌ اوْ نَقْصٌ | इलाही ईन काना फ़ीहा ख़ला’लुन औ नक़’सून | ख़ुदा वंदा! अगर ईस नमाज़ में कोई ख़लल , |
مِنْ رُكُوعِهَا اوْ سُجُودِهَا | मिन रुकू इहा ईहा औ सजू’दीहा | या इसके रुकू व सजूद में कुछ कमी हो ; |
فَلاَ تُؤَاخِذْنِي | फ़ला तू आ’खिज़्नी | तो ईस पर मेरी ग़िरफ़त न फ़रमा ; |
وَتَفَضَّلْ عَلَيَّ بِٱلْقَبُولِ وَٱلْغُفْرَانِ | व तफ़द-दल अलैय्या बिल क़बू’ली वल गुफ़रानी | और इसके क़बूलियत और बख़शीश के साथ मुझ पर फज़ल व करम कर दे. |
अपनी वाजिब नमाज़ों क़ो पढ़ने के बाद आप नीचे लिखी हुई दुआ क़ो भी पढ़ सकते है जिसे पवित्र नबी हज़रत मुहम्मद (स:अ:व:व) ने अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ:स)क़ो याद’दाश्त बढाने के लिये बतायी थी!
:
سُبْحَانَ مَنْ لاَ يَعْتَدي عَلَىٰ اهْلِ مَمْلَكَتِهِ | सुभाना मन ला या’तदी अला अहली ममले’ कतेही | पाक है वो ख़ुदा जो अपनी ममलेकत में रहने वालों पर ज़्यादती नहीं करता, |
سُبْحَانَ مَنْ لاَ يَاخُذُ اهْلَ ٱلارْضِ بِالْوَانِ الْعَذَابِ | सुभाना मन ला या ख़ू-ज़ू अहला अल-अर्दी बी’ अलवानी अल-अज़ाबी | पाक है वो ख़ुदा जो तरह तरह के अज़ाब से अहले ज़मीन पर गिरफ़्त नहीं करता, |
سُبْحَانَ ٱلرَّؤوُفِ ٱلرَّحِيمِ | सुभाना अल-र’उफ़ी अल-रहीमी | पाक है वो ख़ुदा जो मेहरबान रहम करने वाला है |
اَللَّهُمَّ ٱجَعلْ لِي فِي قَلْبِي نُوراً وَبَصَراً | अल्ला’हुम्मा अज’अल-ली फ़ी क़ल’बी नूरन व बसारण | ऐ माबूद! मेरे क़लब में नूर, बसीरत, |
وَفَهْمَاً وَعِلْمَاً | व फ़ह’मन व इलमन | फ़हम, और ईल्म क़ो जगह दे,. |
إِنَّكَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَديرٌ | ईन’नका अला कुल्ले शै’ईन क़दी’रुन | बेशक तू हर चीज़ पर क़ुदरत रखने वाला है!. |
अल-काफ़ामी ने अपनी किताब अल-मिस्बाह में बताया है की वाजिब नमाज़ों के बाद नीचे लिखी हुई दुआ क़ो तीन बार पढ़ने की हिदायत की गयी है!:
اعِيذُ نَفْسي وَدِينِي | उ’इज़ु नफ़’सी व दीनी | अपने नफ़स, अपने दीन, |
وَ اهْلِي وَمَالِي | व अहली व माली | अपने अहल, अपने माल, |
وَوَلَدِي وَإِخْوَانِي فِي دِينِي | व वालादी व ईख़’वाणी फ़ी दीनी | अपनी औलाद, अपने दीनी भाइयों |
وَمَا رَزَقَنِي رَبِّي وَخَوَاتِيمَ عَمَلِي | व मा र’ज़-क़नी रब्बी व ख़वा’तिमा अमली | और अपने रब के दिए हुए रिज़क़, अपने अमाल के अंजाम |
وَمَنْ يَعْنِينِي امْرُهُ | व मन या निनी अम्रुहू | और जिस किसी से त’आलुक़ रखता हूँ |
بِٱللَّهِ ٱلْوَاحِدِ | बिल’लाही अल वाहिदी | ईन सब क़ो खुदाये वाहिद व |
ٱلاحَدِ ٱلصَّمَدِ | अल अहदी-अस समदी | यकता-ए-व-बे-नेयाज़ की पनाह में देता हूँ |
ٱلَّذِي لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ | अल-लज़ी लम यलिद वलं यु’लद | की जिस ने न किसी क़ो जना और न जना गया |
وَلَمْ يَكُنْ لَهُ كُفُواً احَدٌ | व लम य कुल-लहू कु-फ़ूवन अहद | और न कोई इसका हमसर है, |
وَبِرَبِّ ٱلْفَلَقِ | व बे-रब्बी अल-फ़लाक़ी | मै इनको सुबह के मालिक की पनाह में देता हूँ |
مِنْ شَرِّ مَا خَلَقَ | मिन शर्री मा ख़लक़ | हर ईस चीज़ के शर से जो इसने पैदा की |
وَمِنْ شَرِّ غَاسِقٍ إِذَا وَقَبَ | व मिन शर्री ग़ासेक़ीन ईज़ा वक़ब | और अँधेरी रात के शर से जब छा जाए! |
وَمِنْ شَرِّ ٱلنَّفَّاثَاتِ فِي ٱلْعُقَدِ | व मिन शर्री-ल नफ़-फ़ा-साती फ़िल उ’क़द | गिरोहों के फूंकने वालों के शर से |
وَمِنْ شَرِّ حَاسِدٍ إِذَا حَسَدَ | व मिन शर्री हासेदीन ईज़ा हसद | और हासिद के शर से जब वो हसद करे! मै ईन सबको |
وَبِرَبِّ ٱلنَّاسِ | व बे’रब्बी अन-नास | इंसानों के रब, |
مَلِكِ ٱلنَّاسِ | मालिकी-न नास | इंसानों के बादशाह |
إِلٰهِ ٱلنَّاسِ | इलाही-न नास | इंसानों के माबूद |
مِنْ شَرِّ ٱلْوَسْوَاسِ ٱلْخَنَّاسِ | मिन शर्री’ल व़स’वासिल ख़’न्नास | की पनाह में देता हूँ! शैतान के वसूसों के शर से |
ٱلَّذِي يُوَسْوِسُ فِي صُدُورِ ٱلنَّاسِ | अल-लज़ी यो’व़स-वेसो फ़ी सु’दु-रिन नास | जो लोगों के दिलों में वासूसे डालता है |
مِنَ ٱلْجِنَّةِ وَٱلنَّاسِ | मिनल जिन्नते वन’नास | ख्वाह जिन्नों में से हों या इंसानों में से हों. |
शेख़ अल-शाहिद द्वारा हाथों से लिखी गयी लिपि में मिलता है रसूले अकरम हज़रत मोहम्मद (स:अ:व:व) ने कहा : जो शख्स यह चाहता है की उसके गुनाह उसको न आख़ेरत के रोज़ न दिखाए जो उसने ईस दुन्या में किये हैं, और न हि उसके गुनाहों का हिसाब करे, उसे चाहिए की वो ईस दुआ क़ो अपने हर वाजिब नमाज़ के बाद पढ़े
:
اَللَّهُمَّ إِنَّ مَغْفِرَتَكَ ارْجَىٰ مِنْ عَمَلِي | अल्लाहुम्मा इन्ना मग़’फ़ी-रतेका अरजा मिन अमली | ऐ अल्लाह! तेरी बख्शीश मेरे उम्मीद से ज़्यादा उम्मीद अफज़ा है |
وَإِنَّ رَحْمَتِكَ اوْسَعُ مِنْ ذَنْبِي | व इन्ना रह’मतिका औ’सा-उ मिन जंबी | और तेरी रहमत मेरे गुनाह से ज़्यादा वसी’अ है! |
اَللَّهُمَّ إنْ كَانَ ذَنبِي عِنْدَكَ عَظِيماً | अल्लाहुमा ईन काना जंबी इनदका अज़ीमन | इलाही अगर तेरे नज़दीक मेरा गुनाह अज़ीम है |
فَعَفْوُكَ اعْظَمُ مِنْ ذَنْبِي | फ़’अफ़’वुका अ’ज़मु मिन जंबी | तो तेरा अफ़ू मेरे गुनाह से अज़ीम’तर है |
اَللَّهُمَّ إِنْ لَمْ اكُنْ اهْلاً انْ ابْلُغَ رَحْمَتَكَ | अल्लाहुमा ईन लम अकुं अहलन अन अब’लुग़ा रह-मताका | इलाही अगर मै तेरे रहमत तक पहुँचने का अहल नहीं |
فَرَحْمَتُكَ اهْلٌ انْ تَبْلُغَنِي وَتَسَعَنِي | फ़’रहमतुका अह्लूं अन तब-लू’गणी व तसा अणि | तो तेरी रहमत ज़रूर मुझ तक और मुझ पर छा जाने की अहल है |
لانَّهَا وَسِعَتْ كُلَّ شَيْءٍ | ली-अन्नाहा वासे’अत कुल्ला शै’ईन | क्योंकि ईस ने तेरे करम से, हर चीज़ क़ो घेरा हुआ है! |
بِرَحْمَتِكَ يَا ارْحَمَ ٱلرَّاحِمينَ | बी’रहमतिका य अर्हमर राहिमीना | ऐ सब से बढ़ कर रहम करने वाले! |
इब्ने बाबावय्ह (शेख़ अल सुददुक़) फ़रमाते हैं की तस्बीहे ज़हरा पढ़ने के बाद नीचे हुई लिखी दुआ क़ो ज़रूर पढ़े!:
اَللَّهُمَّ انْتَ ٱلسَّلاَمُ | अल्लाहुम्मा अन्ता अस-सलामु | ऐ माबूद तो सलामती वाला है |
وَمِنْكَ ٱلسَّلاَمُ | व मिनका अस-सलामु | सलामती तेरी तरफ़ से है |
وَلَكَ ٱلسَّلاَمُ | व लका अस-सलामु | सलामती तेरे लिये ही है |
وَإِلَيْكَ يَعُودُ ٱلسَّلاَمُ | व इलैका या-उदो अस-सलामु | और सलामती की बाज़-गुज़श्त तेरे ही तरफ़ है, |
سُبْحَانَ رَبِّكَ رَبِّ ٱلْعِزَّةِ عَمَّا يَصِفُونَ | सुभाना रब-बिका रब-बी’अल ईज़’ज़ती अम्मा यासी’फ़ुना | साहिबे इज़्ज़त व ग़ालिब परवरदिगार ईस से पाक है,जो कुछ यह कहते हैं |
وَسَلاَمٌ عَلَىٰ ٱلْمُرْسَلِينَ | व सलामुन अला अल’मुर्सलीना | और सलाम हो तमाम रसूलों पर |
وَٱلْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلْعَالَمِينَ | वल हम्दु लील-लाही रब्बी-अल आला’मीना | और हर क़िस्म की हम्द दोनों जहानों के परवरदिगार के लिये है. |
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ اَيُّهَا ٱلنَّبِيُّ | अस-सलामु अलैका अय्योहा;ल नबियो | ऐ नबी (स:अ:व:व) आप पर सलाम हो |
وَرَحْمَةُ ٱللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ | व रह’मातुल लाहे व बर’कातुहू | और ख़ुदा की रहमत और इसकी बरकात हों . |
اَلسَّلاَمُ عَلَىٰ ٱلائِمَّةِ ٱلْهَادِينَ ٱلْمَهْدِيِّينَ | अस-सलामु अला अल-अ’इम्मते अल-हादीना अल-महदी’ईना | सलाम हो अ’ईम्मा (अ:स) पर जो हिदायत-याफ़्ता हादी हैं, |
اَلسَّلاَمُ عَلَىٰ جَمِيعِ انْبِيَاءِ ٱللَّهِ وَرُسُلِهِ وَمَلاَئِكَتِهِ | अस-सलामु अला जमी’ई अम्बिया’ई अल्लाहे व रसूल-लिल्लाहे व मला’ई-कतीही | सलाम हो ख़ुदा के सब नबियों, रसूलों और फ़रिश्तों पर, |
اَلسَّلاَمُ عَلَيْنَا وَعَلَىٰ عِبَادِ ٱللَّهِ ٱلصَّالِحِينَ | अस-सलामु अलैना व अला इबा’दियल-लाहे अस-सालेहीना | सलाम हो हम पर और ख़ुदा का सालेह बन्दों पर, |
اَلسَّلاَمُ عَلَىٰ عَلِيٍّ اميرِ ٱلْمُؤْمِنينَ | अस-सलामु अला अली’ईन अमीरुल’मोमेनीना | सलाम हो हज़रत अली, अमीरुल-मोमिनीन (अ:स) पर, |
اَلسَّلاَمُ عَلَىٰ ٱلْحَسَنِ وَٱلْحُسَيْنِ | अस-सलामु अला अल-हसनी वल हुसैनी | सलाम हो हसन (अ:स) व हुसैन (अ:स) पर, |
سَيِّدَيْ شَبَابِ اهْلِ ٱلْجَنَّةِ اجْمَعينَ | सय्येदाह शबाबी अहले जन्नाह अज’म’इना | जो तमाम जवानाने जन्नत के सैययद व सरदार हैं, |
اَلسَّلاَمُ عَلَىٰ عَلِيِّ بْنِ ٱلْحُسَيْنِ زَيْنِ ٱلْعَابِدِينَ | अस-सलामु अला अली’यिब्ने अल-हुसैनी जैनल’आबेदीना | सलाम हो अली (अ:स) बिन अल-हुसैन (अ:स) पर के जो ज़’ऐनुल आबेदीन हैं |
اَلسَّلاَمُ عَلَىٰ مُحَمَّدِ بْنِ عَلِيٍّ بَاقِرِ عِلْمِ ٱلنَّبِيِّينَ | अस-सलामु अला मुहम्मद-इब्नी अली’ईन बाक़री इल्मी अन-नबी’ईना | सलाम हो मुहम्मद (अ:स) इब्ने अल अल-बाक़र (अ:स) पर जो अम्बिया के ईल्म क़ो खोलने वाले हैं, |
اَلسَّلاَمُ عَلَىٰ جَعْفَرِ بْنِ مُحَمَّدٍ ٱلصَّادِقِ | अस-सलामु अला जाफ़र-इब्ने मुहम्मदीन अल-सादीक़ | सलाम हो मुहम्मद (अ:स) के फ़र्ज़न्द जाफ़र अल-सादीक़ (अ:स) पर, |
اَلسَّلاَمُ عَلَىٰ مُوسَىٰ بْنِ جَعْفَرٍ ٱلْكَاظِمِ | अस-सलामु अला मूसा बिन जा’फ़’रिन अल-काज़िम | सलाम हो जाफ़र अल-सादीक़ (अ:स) के फ़र्ज़न्द मूसा काज़िम (अ:स)० पर, |
اَلسَّلاَمُ عَلَىٰ عَلِيِّ بْنِ مُوسَىٰ ٱلرِّضَا | अस-सलामु अला अली’इब्ने मूसा अर-रज़ा | सलाम हो मूसा काज़िम (अ:स) के फ़र्ज़न्द अली रज़ा (अ:स) पर, |
اَلسَّلاَمُ عَلَىٰ مُحَمَّدِ بْنِ عَلِيٍّ ٱلْجَوَادِ | अस-सलामु अला मुहम्मद इब्ने अलीयिन अल-जवादी | सलाम हो अली रज़ा (अ:स) के फ़र्ज़न्द मुहम्मद अल-जवाद (अ:स) पर |
اَلسَّلاَمُ عَلَىٰ عَلِيِّ بْنِ مُحَمَّدٍ ٱلْهَادِي | अस-सलामु अला अली-इब्ने मुहम्मदीन अल-हादी | सलाम हो मोहम्मद अल-जवाद (अ:स) के फ़र्ज़न्द अली अल-हादी (अ:स) पर |
اَلسَّلاَمُ عَلَىٰ ٱلْحَسَنِ بْنِ عَلِيٍّ ٱلزَّكِيِّ ٱلْعَسْكَرِيِّ | अस-सलामु अला अल-हसनी इब्न अलीयिन अल-ज़कियल अस्करियी | सलाम हो अली अल-हादी (अ:स) के फ़र्ज़न्द हसन अस्करी अल-ज़की (अ:स) पर, |
اَلسَّلاَمُ عَلَىٰ ٱلْحُجَّةِ بْنِ ٱلْحَسَنِ ٱلْقَائِمِ ٱلْمَهْدِيِّ | अस-सलामु अला अल-हुज्जती इब्ने अल-हसनी अल-क़ायेमी अल मेहदी’यी | सलाम हो हसन अल-अस्करी (अ:स) के फ़र्ज़न्द हुज्जत अल-क़ायेम मेहदी (अ:स) पर, |
صَلَوَاتُ اللّهِ عَلَيْهِمْ اجْمَعينَ | सल्वातुल-लाही अलैहिम अजमा’ईना | ईन सब पर ख़ुदा की रहमतें हों |
ईस दुआ क़ो पढ़ने के बाद कोई भी शख्स अल्लाह से अपनी मुरादें मांग सकता है!.
शेख़ अल-काफ़ामी भी फ़रमाते हैं की अपनी वाजिब नमाजें पढ़ने के बाद नीचे लिखी हुई दुआ क़ो ज़रूर पढ़ना चाहिए !
رَضِيتُ بِٱللَّهِ رَبّاً | र’ज़यतो बिल्लाहि रब्बन | मै राज़ी हूँ ईस पर की अल्लाह मेरा रब, |
وَبِٱلإِسْلاَمِ ديناً | व बिल’इस्लामे दीनन | इस्लाम मेरा दीन, |
وَبِمُحَمَّدٍ صَلَّىٰ ٱللَّهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ نَبِيّاً | व मुहम्मदीन सल लल्लाहो अलैहि व आलेही नबी’यन | मुहम्मद (स:अ:व:व) मेरे नबी |
وَبِعَلِيٍّ إِمَامَاً | व बे अलीयिन इमामन | और अली (अ:स) मेरे ईमाम हैं! |
وَبِٱلْحَسَنِ وَٱلْحُسَيْنِ | व बिल हसने वल हुसैन | इसके बाद हज़रत हसन (अ:स) व हुसैन अ:स) , |
وَعَلِيٍّ وَمُحَمَّدٍ | व अली’ईन व मुहम्मदीन | `अली, मुहम्मद, |
وَجَعْفَر وَمُوسَىٰ | व जा’फ़-रिन व मूसा | जाफ़र, मूसा , |
وَعَلِيٍّ وَمُحَمَّدٍ | व अली’ईन व मुहम्मद | `अली, मुहम्मद, |
وَعَلِيٍّ وَٱلْحَسَنِ | व अली’ईन वल हसानी | `अली, अल-हसन, |
وَٱلْخَلَفِ ٱلصَّالِحِ عَلَيْهِمُ ٱلسَّلاَمُ | वल-ख़’लफ़ी अल्स’सालिही अले-हिमुस सलामु | और खलीफ़ा है, और सब (अ:स) पर सलाम हो |
ائِمَّةً وَسَادَةً وَقَادَةً | अ-ईम्मा’तन व सा’दतन व क़ा’दतन | मेरे ईमाम, सरदार, रहबर हैं |
بِهِمْ اتَولَّىٰ وَمِنْ اعْدَائِهِمْ اتَبَرَّا | बिहिम अता-वल्ला व मिन आदा-इहीम अता’बर र’उ | और मै इनसे मुहब्बत रखता हूँ और इनके दुश्मनों से बेज़ार हूँ. |
आपको ईस दुआ क़ो 3 बार दोहराना चाहिए:
اَللَّهُمَّ إِنِّي اسْالُكَ ٱلْعَفْوَ وَٱلْعَافِيَةَ | अल्ला-हुम्मा इन्नी अस-अलुका अल अफ़’वा वल-अफ़ी’याता | या अल्लाह मै तुझ से रहम मांगता हूँ और अच्छी सेहत भी, |
وَٱلْمُعَافَاةَ فِي ٱلدُّنْيَا وَٱلآخِرَةِ | वल-मु आ’फ़-ता फ़ी अल-दुन्या वल आखिरते | और ईस दुन्या और आख़ेरत में तेरी भलाई भी. |
|
सुबह और शाम में पढ़ी जाने वाली दुआएं
ईमाम जाफ़र अल-सादीक़ (अ:स) ने फ़रमाया “जब कोई शख्स, सूरज निकलने से पहले और सूरज डूबने से पहले हर रोज़ ईस दुआ क़ो दस बार पढ़ेगा, तो उसके किये हुए उस दिन के सारे गुनाह माफ़ हो जायेंगे”:
ला इलाहा ईल अल्लाहो वह’दहु ला शरीका-लहू लहुल मुल्को व लहुल हम्दो योही व युमीतो व योही व हुवा हई-युन ला यमूतो बे या’दहिल खै’रे व हुवा अला कुल्ले शै’ईन क़दीर |
ईमाम मोहम्मद बाक़र (अ:स) फ़रमाते हैं, “जो मुहम्मद (स:अ:व:व) और आले मुहम्मद (अ;स) पर फ़ज्र में सलवात भेजे और इसे दोहराए
सुभान अल्लाह ( 35 बार) ला इलाहा ईल अल्लाह (35 बार) अलहम्दु लिल्लाह (35 बार) |
और शाम में भी दोहराए, तो इसकी गिनती उनमे से होगी जिसने सुनाह से शाम तक अलाह से दुआएं मांगी होन! और जो 100 बार सुबह और शाम अल्लाहो अकबर पढ़े तो इसका सवाब 100 गुलामों क़ो आज़ाद करने के बराबर मिलेगा
यह कहा जाता हई की अल्लाह के रसूल (स:अ:व:व) रोज़ाना सुबह और शाम यह दुआ 360 बार पढ़ा करते थे :
अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलिमीन कसीरण अला कुल्ले हालीन
वो (स:अ:व:व:) फ़रमाते हैं की इंसान के जिस्म में 360 रगें होती हैं, जिनमे 180 स्थिर (ठहरी हुई) होती हैं और 180 गतीमान (घूमती) होती हैं! अगर कोई स्थिर रग गतीमान हो जाए या कोई गतीमान रग स्थिर हो जाए तो इंसान सारी रात तकलीफ से सो नहीं सकता है, इसलिए उसे चाहिए की ऊपर लिखी हुई दुआ क़ो पढ़ा करे.
हज़रत अमीरुल-मोमिनीन (अ:स) फ़रमाते हैं की अगर ईस दुआ क़ो कोई सुबह और शाम पढ़े तो अल्लाह ज़रूर उसे जन्नत में भेजेगा!:
र’ज़यतो बिल्लाहि रब्बन व बिल’इस्लामे दीनन |
ईमाम जाफ़र सादीक़ (अ:स) फ़रमाते हैं की जो ईस दुआ क़ो रोज़ाना 25 बार पढ़ेगा तो अल्लाह उसके नाम के साथ हज़रत आदम (अ:स) से आख़ेरत तक के लिये लेकर एक भलाई लिखेगा जो सवाब हर मोमिन के सवाब के बराबर होगा!:
अल्लाहुम्मा अग़’फिरू लील’मोमिनीना वल मोमिनाते वल मुसलिमीना वल मुस्लिमाते |
दस बार पढ़ें क़ुरानी सुरः क़ुल हुवल लाहो (सुरः ईख़’लास):
दस बार पढ़ें “सारी तारीफें अल्लाह के लिये, जो श्रेष्ठ हई, और जहाँ किसी का कोई इख़्तियार नहीं सिवाए अल्लाह के, सबसे आला, सबसे बुलंद और सब पर क़ादिर”.
एक बार पढ़ें :“शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा रहमान और रहीम है, मुझे अपनी इनायत से राहे रास्त दिखा; अपनी उदारता से मेरे कम रिज्क़ में भरमार कर दे. अपना रहम मेरे चारों तरफ़ फैला दे. अपनी रहमत मुझ पर भेज दे!”
दस बार पढ़ें:“सारी हम्द व सना अल्लाह के लिये हैं, जिसके सिवा कोई माबूद नहीं है और वो ही सब से बड़ा है!”.
दस बार पढ़ें:“मै गवाही देता हूँ के ख़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं जो यकता है, कोई इसका शरीक नहीं वो माबूद यगाना, यकता, वाहिद (और) बे-नेयाज़ है के जिसकी न बीवी है और न ही औलाद है!”
एक बार पढ़ें:“शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा रहमान और रहीम है,मै अपने नफ़स, अपने दीन, अपने अहल, अपने माल, अपनी औलाद, अपने दीनी भाइयों और अपने रब के दिए हुए रिज़क़, अपने अमाल के अंजाम और जिस किसी से त’आलुक़ रखता हूँ ईन सब क़ो खुदाये वाहिद व यकता-ए-व-बे-नेयाज़ की पनाह में देता हूँ की जिस ने न किसी क़ो जना और न जना गया और न कोई इसका हमसर है, मै इनको सुबह के मालिक की पनाह में देता हूँ, हर ईस चीज़ के शर से जो इसने पैदा की और अँधेरी रात के शर से जब छा जाए! गिरोहों केफूंकने वालों के शर से और हासिद के शर से जब वो हसद करे! मै ईन सबको इंसानों के रब, इंसानों के बादशाह, इंसानों के माबूद की पनाह में देता हूँ! शैतान के वसूसों के शर से जो लोगों के दिलों में वासूसे डालता है! ख्वाह जीनों में से हों या इंसानों में से हों!”
एक बार पढ़ें:There is no power or strength save in God The most High, the Most Supreme. I rely on the Living Who will not Taste, the Taste of death I laud and glorify the One Who has not take a spouse Or a son! Nor there was a partner to share sovereignty nor a friend To supplement a possible need. So glorify Him In the greatest way possible.
तीन बार पढ़ें:“I seek forgiveness from the Lord (testifying) There is no God other than Him The Living and the Everlasting Of Majesty and Splendour And I turn to Him In Repentence!”
तब पढ़ें :“O Lord I ask you In the name of Muhammad and his line of Progeny To have Mercy on Muhammad and his posterity. And (through them) grant me (also) The light in my eyes, the true understanding of my faith The (Divine) Certainty in my heart The sincerity in my actions and peace in my mind And spaciousness in the means of my living And gratitude unto You As long as you decide to keep me alive”.
तब पढ़ें :“There is no God except Allah, the One, without any partner. To Him belongs the Kingdom and to Him is due all Praise. He gives life and death. In His hand is the good, and He has power over all things”.
“I seek refuge in Allah, the Hearing, the Knowing, from the evil suggestions of Shaitans and seek refuge in Allah from their presence. Surely Allah — He is the Hearing, the Knowing”.
तब पढ़ें :“O Allah! Who transforms hearts and eyes, may my heart steadfast to Thy religion. And make not my heart to deviate after Thou hast guided me a right and grant me Thy mercy. Surely Thou art All – bestower, and by Thy mercy save me from the fire. Oh Allah! Extend the span of my life and increase my subsistence and unfold Thy Knowledge. If there is any misfortune for me in the guarded tablets make it fortunate for me, for surely thou effaces what Thou pleases and inscribes (what Thou pleases) and art heart of guarded tablet”.
रोज़ाना के अमाल | ||||
(1) 3 बार पढ़ें: | ||||
अल्लाहो अकबर (अल्लाह सबसे बड़ा है) | اللهُ اَكْبَرُ | |||
(2) फिर पढ़ें : | ||||
ला इलाहा इलल लाहू इलाहन वाहिदन व नहनु लहू मुस्लिमुना ला इलाहा इलल लाहू व ला ना बुदू इल्ला इय्याहूमुख़’ली’सीना लहू’द दीना व लौ करिहल मुशरिकुना ला इलाहा इलल लाहू रब्बुना व रब्बु आबा’इना अल-अव्वालीना ला इलाहा इलल लाहू वह’दहु वह’दहु वह’दहु अन’जज़ा व’अ दहु व नसरा अब’दहुव अ-अज़-अ जुन’दहु व हज़ा’मल अह’ज़ाबा वह’दहु फ़’लहूल मुल्को व लहुल हम्द यूह’यी व युम’इतु व यु’मितु व यूह’यी व हुवा ह’य्यून व या’मुतु बिया’दिहिल खैरू व हुवा अला कुल्ली शै’ईन क़’दीरुनٌ | لا اِلـهَ إلاَّ اللهُ اِلهاً واحِداً وَنَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ لا اِلـهَ إلاَّ اللهُ وَلا نَعْبُدُ إلاّ اِيّاهُ مُخْلِصينَ لَهُ الدّينَ وَلَوْ كَرَهَ الْمُشْرِكُونَ لا اِلـهَ اِلاَّ اللهُ رَبُّنا وَرَبُّ آبائنَا الاَْوَّلينَ لا اِلـهَ اِلاَّ اللهُ وَحْدَهُ وَحْدَهُ وَحْدَهُ اَنْجَزَ وَعْدَهُ وَنَصَرَ عَبْدَهُ وَاَعَزَّ جُنْدَهُ وَهَزَمَ الاَْحْزابَ وَحْدَهُ فَلَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ يُحْيي وَيُميتُ وَيُميتُ وَيُحْيي وَهُوَ حَىٌّ لا يَمُوتُ بِيَدِهِ الْخَيْرُ وَهُوَ عَلى كُلِّ شَيْء قَدير | |||
हिंदी तर्जुमा : ख़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं, वोही माबूद यगाना है और हम ईसके फर्माबरदार हैं, ख़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं हम बस इसकी इबादत करते हैं, इसके दीन के साथ मुख़लिस हैं, ख्वाह मुशरेकीन क़ो ना’गवार हि लगे, ख़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं जो हमारा और हमारे आबा-ओ-अजदाद का रब है, ख़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं जो यकता है, वाहिद है, एक है, इसने अपना वादा पूरा किया, अपने बन्दे की नुसरत फ़रमाई अपने लश्कर क़ो ग़ालिब किया और अकेले हि जत्थों क़ो मार भगाया, बस मुल्क इसीका और हम्द इसी के लिये है, वोही जिंदा करता है, वो जिंदा है इसे मौत नहीं! ख़ैर इसी के हाथ में है और वो हर चीज़ पर क़ादिर है !. | ||||
(3) फिर पढ़ें : | ||||
अस’तग़ – फ़ा’रल्लाह अल’लज़ी ला इलाहा इल्ला हुवल हय्यल क़य’युमो व आतुबे इलैह | اَسْتَغْفِرُ اللهَ الَّذي لا اِلـهَ اِلاّ هُوَ الْحَيُّ الْقَيُّومُ وَاَتُوبُ اِلَيْهِ | |||
हिंदी तर्जुमा : मै ईस ख़ुदा से बख्शीश चाहता हूँ जिसके सिवा कोई माबूद नहीं, वो जिंदा व पा’इन्दा है (हमेशा ज़िंदा रहने वाला है), और मै इसके हुज़ूर तौबा करता हूँ ! | ||||
(4) फिर पढ़ें : | ||||
अल्लाहुम्मा इह’दिनी मिन इंदीका व’अफ़िज़ अलय्या मिन फ़ज़’लिका व’अंशुर अलय्या मिन रह’मतिका व’अन्ज़ील अलय्या मिन बरकातिका सुभ’आनाका ला इलाहा इल्ला अन्ता अग़’फ़िरली ज़ुनुबी कुल्ली’हा जमी’अन फ़’इन्ना’हु ला युग़फ़िरु अज़’ज़ुनुबा कुल्ली’हा जमी’अन इल्ला अन्ता अल्लाहुम्मा इन्नी अस’अलुका मिन कुल्ली खैरिन अह’आता बिही इल्मुका व अ’उज़ो बिका मिन कुल्ली शर’रिन अह’आता बिही इल्मुका अल्लाहुम्मा इन्नी अस’अलुका आ’फ़ि’यता-का फ़ि उमूरी कुल्लिहा व अ’उज़ो-बिका मिन खिज़’यी अल-दुन्या व अज़ाबी’ल आखी’रति व अ’उज़ो बी’वज-हिकल करीमी व ईज़’ज़तिकल लती ला तुरामु व क़ुद’रतिकल लती ला यम’तनी’उ मिन्हा शै’युन मिन शर’री-अल दुन्या वल आखिरति व मिन शर’री-अल औजा’ई कुल्लिहा व मिन शर-री कुल्ली दाब’बतीन अन्ता आखिज़ुन बिन अस्या’तिहा इन्ना रब्बी-अला सिरातिन मुस’तक़ीमिन व ला हौला व ला क़ु-वता इल्ला बिल’लाहिल अली’युल अज़ीम तवा’कल्तु अला अल-हय्यी अल-लज़ी ला य-मुतो वल-हम्दु लील-लाहे अल-लज़ी लम यत्ता’खिज़ु वला’दन व लम यकून लहू शरिया-कुन फ़ि-अल’मुल्की व लम यकून लहू वली’युन मिना अल-द’दुल्ली व कब्बिर’हु तक’बीरन | اَللّـهُمَّ اهْدِني مِنْ عِنْدِكَ وَاَفِضْ عَلَيَّ مِنْ فَضْلِكَ وَانْشُرْ عَلَيَّ مِنْ رَحْمَتِكَ وَاَنْزِلْ عَلَيَّ مِنْ بَرَكاتِكَ سُبْحانَكَ لا اِلـهَ اِلاّ اَنْتَ اغْفِرْ لي ذُنُوبي كُلَّها جَميعاً فَاِنَّهُ لا يَغْفِرُ الذُّنُوبَ كُلَّها جَميعاً اِلاّ اَنْتَ | |||
हिंदी तर्जुमा :ऐ अलह अपनी जानिब से मेरी रहनुमाई फ़रमा और मुझ पर अपना फ़ज़ल-ओ-करम फार्म, और मुझ पर अपनी रहमत फैला दे और मुझ पर अपनी बरकात नाज़िल फ़रमा, तेरी ज़ात पाक है, सिवाए तेरे कोई माबूद नहीं, मेरे सारे के सारे गुनाह माफ़ फ़रमा के तेरे सिवा कोई गुनाह माफ़ नहीं कर सकता, ऐ अल्लाह, तुझ से हर उस ख़ैर का तलबगार हूँ जिसका तेरा ईल्म अहाता किये हुए हैं, और, हर ईस शर से तेरी पनाह चाहता हूँ जिस पर तेरा ईल्म मोहय्यत है! ऐ अल्लाह मै अपने तमाम उमूर में तुझ से आफ़ियत तलब करता हूँ, मै दुन्या की रुसवाई और आख़ेरत के अज़ाब से तेरी पनाह चाहता हूँ, मै तेरी करीम ज़ात और बुलंद मुक़ाम के जिस तक किसी की रसाई नहीं और तेरी क़ुदरत के जिस के सामने कोई चीज़ नहीं ठहरती ईन के ज़रिये दुन्या व आख़ेरत के शर और तमाम दर्द व अज़ीयत और, हर हैवान के शर से पनाह चाहता हूँ जो तेरे क़ब्ज़ा-ए-क़ुदरत में है, बेशक मेरे रब का रास्ता मुस्तक़ीम है और ताक़त व क़ुव्वत बस खुदाये अज़ीम व बरतरी से मिलती है और मेरा भरोसा ईस जिंदा (ख़ुदा) पर है, जिस के लिये मौत नहीं,हम्द ईस ख़ुदा के लिये जिस ने न किसी क़ो फ़र्ज़न्द बनाया न कोई इसके मुल्क में शरीक है और न इसके आजिज़ी के सबब कोई इसका मददगार है और तुम इसकी बड़ाई का इज़हार करो !, और कहो ” अल्लाहो अकबर” | ||||
(5) (तब) तस्बीह ए फ़ातिमा ज़हरा (स:अ) पढ़ें: | ||||
इब्ने बाबावय्ह (शेख़ अल सुददुक़) फ़रमाते हैं की तस्बीहे ज़हरा (स:अ) पढ़ने के बाद नीचे हुई लिखी दुआ क़ो ज़रूर पढ़े! | ||||
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हिंदी तर्जुमा : ऐ माबूद तो सलामती वाला है, सलामती तेरी तरफ़ से है सलामती तेरे लिये ही है, और सलामती की बाज़-गुज़श्त तेरे ही तरफ़ है, साहिबे इज़्ज़त व ग़ालिब परवरदिगार ईस से पाक है, जो कुछ यह कहते हैं और सलाम हो तमाम रसूलों पर और हर क़िस्म की हम्द दोनों जहानों के परवरदिगार के लिये है ऐ नबी (स:अ:व:व) आप पर सलाम हो और ख़ुदा की रहमत और इसकी बरकात हों, सलाम हो अ’ईम्मा (अ:स) पर जो हिदायत-याफ़्ता हादी हैं, सलाम हो ख़ुदा के सब नबियों, रसूलों और फ़रिश्तों पर, सलाम हो हम पर और ख़ुदा का सालेह बन्दों पर, सलाम हो हज़रत अमीरुल-मोमिनीन (अ:स) पर, सलाम हो हसन (अ:स) व हुसैन (अ:स) पर, जो तमाम जवानाने जन्नत के सैययद व सरदार हैं, सलाम हो अली (अ:स) बिन अल-हुसैन (अ:स) पर के जो ज़’ऐनुल आबेदीन हैं, सलाम हो मुहम्मद (अ:स) इब्ने अल अल-बाक़र (अ:स) पर जो अम्बिया के ईल्म क़ो खोलने वाले हैं, सलाम हो मुहम्मद (अ:स) के फ़र्ज़न्द जाफ़र अल-सादीक़ (अ:स) पर, सलाम हो जाफ़र अल-सादीक़ (अ:स) के फ़र्ज़न्द मूसा काज़िम (अ:स)० पर, सलाम हो मूसा काज़िम (अ:स) के फ़र्ज़न्द अली रज़ा (अ:स) पर, सलाम हो अली रज़ा (अ:स) के फ़र्ज़न्द मुहम्मद अल-जवाद (अ:स) पर, सलाम हो मोहम्मदअल-जवाद (अ:स) के फ़र्ज़न्द अली अल-हादी (अ:स) पर, सलाम हो अली अल-हादी (अ:स) के फ़र्ज़न्द हसन अस्करी अल-ज़की (अ:स) पर, सलाम हो हसन अल-अस्करी (अ:स) के फ़र्ज़न्द हुज्जत अल-क़ायेम मेहदी (अ:स) पर, ईन सब पर ख़ुदा की रहमतें ह | ||||
(6) 10 बार पढ़ें (ख़ासकर फ़ज्र और मग़रिब की नमाज़ के बाद): | ||||
अश’हदों अन ला इलाहा इलल लाहो वह’दहु ला शरीका लहू इलाहन वाहिदन अहदन फ़रदन समदन लम यत्ता-खिज़ साही’बतन व ला वलादन | اَشْهَدُ اَنْ لا اِلـهَ اِلاَّ اللهُ وَحْدَهُ لا شَريكَ لَهُ اِلهاً واحِداً أحَداً فَرْداً صَمَداً لَمْ يَتَّخِذْ صاحِبَةً وَلا وَلَدا | |||
हिंदी तर्जुमा :मै गवाही देता हूँ के ख़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं जो यकता है, कोई इसका शरीक नहीं वो माबूद यगाना, यकता, वाहिद (और) बे-नेयाज़ है के जिसकी न बीवी है और न ही औलाद है! . | ||||
(ii) तब पढ़ें : | ||||
सुभान अल्लाहि कुल’लमा सब’बहा अल्लाहा शै’युन व कमा युहिब’बू अल्लाहू अन युसब’बहा व कमा हुवा अहलुहू व कमा यन’बग़ी ले करम’ई वज’हे’ई व ईज़’ज़ी जला’लिही वल’हम्दु लील’लाहे कुल्ला’मा हमीदल लाहा शै’युन व कमा युहिब’बूल लाहो अन यूह’मदा व कमा हुवा अहलुहू व कमा यन’बग़ी ली’करम’ई वज’हीही व ईज़’ज़ी जला’लिही व ला इलाहा इलल लाहो कुल’लमा हल’ल-लल लाहो शै’युन व कमा युहिब’बूल लाहू अन यु-हल-लला व कमा हुवा अह’लहू व कमा यन’बग़ी ले-करम’ई वज’हीही व ईज़’ज़ी जला’लिही वल’लाहो अकबरो कुल’लमा कब’बरा-लाहा शै’युन व कमा युहिब’बू अल-लाहू अन यु’कब-बरा व कमा हुवा अह’लहू व कमा यन’बग़ी ले-करम’ई वज’हीही व ईज़’ज़ी जला’लिही सुभान अल्लाहे वल हम्दो लील’लाहे व ला इलाहा इलल लाहो वल’लाहो अकबर अला कुल्ली नि-मतीन अन-अमा बिहा अलय्या व अला कुल्ली अह्दीन मिन ख़ल’क़ेही मिम्मन काना औ य’कुनू इला यौमिल क़ीया’मते अल्ला-हुम्मा इन्नी अस-अलुका अन-तू सल्ले अला मुहम्मदीन व आले मुहम्मदीन व अस-अलुका मिन खैरिल म अरजु व खैरी मा ला अरजु व अ-ऊज़ो’बिका मिन शर’री मा अह’ज़रु व मिन शर-री मा ला अह’ज़रु | سُبْحانَ اللهِ كُلَّما سَبَّحَ اللهَ شَيءٌ وَكَما يُحِبُّ اللهُ اَنْ يُسَبَّحَ وَكَما هُوَ اَهْلُهُ وَكما يَنْبَغي لِكَرَمِ وَجْهِهِ وَعِزِّ جَلالِهِ وَالْحَمْدُ للهِ كُلَّما حَمِدَ اللهَ شَيءٌ وَكَما يُحِبُّ اللهُ اَنْ يُحْمَدَ وَكَما هُوَ اَهْلُهُ وَكَما يَنْبَغي لِكَرَمِ وَجْهِهِ وَعِزِّ جَلالِهِ وَلا اِلـهَ اِلاّ اللهُ كُلَّما هَلَّلَ اللهَ شَيءٌ وَكَما يُحِبُّ اللهُ اَنْ يُهَلَّلَ وَكَما هُوَ اَهْلُهُ وَكَما يَنْبَغي لِكَرَمِ وَجْهِهِ وَعِزِّ جَلالِهِ وَاللهُ اَكْبَرُ كُلَّما كَبَّرَ اللهَ شَيءٌ وَكَما يُحِبُّ اللهُ اَنْ يُكَبَّرَ وَكَما هُوَ اَهْلُهُ وَكَما يَنْبَغي لِكَرَمِ وَجْهِهِ وَعِزِّ جَلالِهِ سُبْحانَ اللهِ وَالْحَمْدُ للهِ وَلا اِلـهَ اِلاَّ اللهُ وَاللهُ اَكْبَرُ عَلى كُلِّ نِعْمَة اَنْعَمَ بِها عَلَىَّ وَعَلى كُلِّ اَحَد مِنْ خَلْقِهِ مِمَّنْ كانَ أوْ يَكُونُ اِلى يَوْمِ الْقِيامَةِ اَللّـهُمَّ اِنّي أسْألُكَ اَنْ تُصَلِّيَ عَلى مُحَمَّد وَآلِ مُحَمَّد وَأسْأَلُكَ مِنْ خَيْرِ ما أَرْجُو وَخَيْرِ ما لا أرْجُو وَاَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ ما أحْذَرُ وَمِنْ شَرِّ ما لا أحْذَرُ . | |||
हिंदी तर्जुमा : पाक है ख़ुदा – जब भी कोई चीज़ ख़ुदा की ऐसी तस्बीह करे जिसे वो पसंद करता है और जिस तस्बीह का वो अहल है और जैसी तस्बीह इसकी करीम ज़ात और जलालत व शान के लायेक़ है, हम्द ख़ुदा के लिये ही है, जब भी कोई चीज़ इसकी ऐसी हम्द करे की जैसी हम्द क़ो वो पसंद करता है और जैसी हम्द का वो अहल है के जो ईस करीम ज़ात और इज़्ज़त व जलाल के लायेक़ है, खुद एके सिवा कोई माबूद नहीं जब भी कोई चीज़ इसका ऐसे ज़िक्र करे जैसे ज़िक्र क़ो ख़ुदा पसंद करता है वो ईस का अहल है और जो ज़िक्र इसकी बुज़ुर्गी और इज़्ज़त व जलाल के शायाने शान है, ख़ुदा बुज़ुर्ग्तर है, जब भी कोई चीज़ इसकी ऐसी बुज़ुर्गी ब्यान करे जैसी बुज़ुर्गी क़ो वो पसंद करता है जिस का वो अहल है और जो बुज़ुर्गी इसकी ऊंची शान और इज़्ज़त व जलाल के लायेक़ है, पाक है ख़ुदा और हम्द इसी के लिये है और ख़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं! और ख़ुदा हर नेमत पर बुज़ुर्ग्तर है जो इसने मुझे दी और जो गुज़री हुई मख्लूक़ क़ो दी और ता क़यामत आने वाली मख्लूक़ क़ो मिलती रहेगी! ऐ अल्लाह! मै तुझ से दरख्वास्त करता हूँ की मुहम्मद (स:अ:व:व) व आले मुहम्मद (अ:स) पर रहमत फ़रमा! मै तुझ से वो ख़ैर तलब करता हूँ जिसका उम्मीदवार हूँ और वो ख़ैर भी जिसकी आरज़ू नहीं की, और हर ईस शर से तेरी पनाह चाहता हूँ, जिस का मुझे खौफ़ है और जिसका खौफ़ नहीं!. | ||||
(7) तब पढ़ें : | ||||
(i) सुरः अल फ़ातिहा – (ii) आयतल कुर्सी – (iii) आयत अस-शहादत (iv) आयत अल-मुल्क – (v) आयत मुस’ख़रात (नीचे लिखी हुई है) : यह तीनो आयतें (आयत 3,4,5) सुरः आरा’फ़ की हैं जिन की शुरू’आत “इन्ना रब’बोकुम अल्लाह” से होता है और यह आयतें “मिन अल-मोहसेनीन” पर होता है! | ||||
اِنَّ ربَّكُمُ اللهُ الَّذِىْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَاْلاَرْضَ فِىْ سِتَّةِ اَيَّامٍ ثُمَّ اسْتَوَاى عَلَى الْعَرْشِ يُغْشِى اللَّيْلَ النَّهَارَ يَطْلُبُه حَثِيْثًا وَّالشَّمْسَ وَالْقَمَرَ وَالنُّجُوْمَ مُسَخَّرَاتٍ بِاَمْرِهِ اَلاَ لَهُ الَاخَلْقُ واْلاَمْرُ تَبَارَكَ اللهُ رَبُّ الْعَالَمِيْنَ. اُدْعُوْا رَبَّكُمْ تَضَرُّعًا وَّخُفْيَةً اِنَّه لاَيُحِبُّ الْمُعْتَدِيْنَ . وَلاَ تُفْسِدُوْا فِى اْلاِرْضِ بَعْدَ اِصْلاَحِهَا وَادْعُوْهُ خَوْفًا وَّطَمَعًا اِنَّ رَحْمَتَ اللهِ قَرِيْبٌ مِّنَ الْمُحْسِنِيْنَ | ||||
हिंदी तर्जुमा : आयत मुस’ख़रात : निस्संदेह तुम्हारा रब वही अल्लाह है, जिसने आकाशों और धरती को छह दिनों में पैदा किया – फिर राजसिंहासन पर विराजमान हुआ। वह रात को दिन पर ढाँकता है जो तेज़ी से उसका पीछा करने में सक्रिय है। और सूर्य, चन्द्रमा और तारे भी बनाए, इस प्रकार कि वे उसके आदेश से काम में लगे हुए है। सावधान रहो, उसी की सृष्टि है और उसी का आदेश है। अल्लाह सारे संसार का रब, बड़ी बरकतवाला है अपने रब को गिड़गिड़ाकर और चुपके-चुपके पुकारो। निश्चय ही वह हद से आगे बढ़नेवालों को पसन्द नहीं करता और धरती में उसके सुधार के पश्चात बिगाड़ न पैदा करो। भय और आशा के साथ उसे पुकारो। निश्चय ही, अल्लाह की दयालुता सत्कर्मी लोगों के निकट है (7:54-56) | ||||
(8) 3 बार पढ़ें : | ||||
سُبْحانَ رَبِّكَ رَبِّ الْعِزَّةِ عَمّا يَصِفُونَ وَسَلامٌ عَلَى الْمُرْسَلينَ وَالْحَمْدُ للهِ رَبِّ الْعالَمينَ | ||||
हिंदी तर्जुमा : तुम्हारा साहिबे इज़्ज़त परवरदिगार ईन बातों से पाक है जो यह लोग कहा करते हैं और सलाम हो सभी अम्बिया (अ:स) पर और हम्द है ख़ुदा की तो आलमीन का रब है!. | ||||
(ii) (तब) कहें : | ||||
اَللّـهُمَّ صَلِّ عَلى مُحَمَّد وَآلِ مُحَمَّد وَاجْعَلْ لي مِنْ اَمْري فَرَجاً وَمَخْرَجاً وَارْزُقْنى مِنْ حَيْثُ أَحْتَسِبُ وَمِنْ حَيْثُ لا أحْتَسِبُ | ||||
हिंदी तर्जुमा : ऐ अल्लाह रहमत फ़रमा मुहम्मद (स:अ:व:व) व आले मुहम्मद (अ:स) पर और मेरे हर काम में कशाइश व सहूलत क़रार दे और मुझे रिज़क़ दे जहां से तवाक़क़ो है और जहाँ से तवाक़क़ो नहीं है!. | ||||
(9) अपना हाथ जन्नत की तरफ़ उठा कर कहें: (7 बार पढ़ें) | ||||
या रब’बा मुहमद्दीन व आले मुहम्मद सल-अल्ला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जिल फ़राजा आले मुहम्मद | يا رَبَّ مُحَمَّد وَآلِ مُحَمَّد صَلِّ عَلى مُحَمَّد وَآلِ مُحَمَّد وَعَجِّلْ فَرَجَ آلِ مُحَمَّد | |||
हिंदी तर्जुमा : ऐ मुहम्मद (स:अ:व:व) व आले मुहम्मद (अ:स) के रब!मुहम्मद (स:अ:व:व) व आले मुहम्मद (अ:स) पर अपनी रहमत फ़रमा और आले मोहम्मद (अ:स) क़ो जल्द कुशादगी अता फ़रमा! | ||||
(ii) इसी अवस्था में बगैर हिले हुए 3 बार कहें: | ||||
या ज़ुल’जलाल वल अकरामी सल्ले-अला मुहम्मदीन व आले मुहम्मद व अर’हमनी व अज’रनी मिनन-नार | يا ذَا الْجَلالِ وَالاِكْرامِ صَلِّ عَلى مُحَمَّد وَآلِ مُحَمَّد وَارْحَمْني وَاَجِرْني مِنَ النّارِ | |||
हिंदी तर्जुमा : ऐ इज़्ज़त व जलाल वाले ख़ुदा! मुहम्मद (स:अ:व:व) व आले मुहम्मद (अ:स) पर अपनी रहमत नाज़िल फ़रमा, मुझ पर रहम कर और जहन्नम की आग से पनाह में रख! | ||||
(10) 12 बार पढ़ें | ||||
(i) सुरः ईख़लास (ii) और उसके बाद यह दुआ पढ़ें जो ईमाम अली अल-मुर्तज़ा (अ:स) हर वाजिब नमाज़ के बाद 12 बार पढ़ा करते थे! | ||||
اَللّـهُمَّ اِنّي أَسْأَلُكَ بِاسْمِكَ الْمَكْنُونِ الَْمخْزُونِ الطّاهِرِ الطُّهْرِ الْمُبارَكِ وَأسْأَلُكَ بِاْسمِكَ الْعَظيمِ وَسُلْطانِكَ الْقَديمِ يا واهِبَ الْعَطايا وَيا مُطْلِقَ الاُسارى وَيا فَكّاكَ الرِّقابِ مِنَ النّارِ أَسْأَلُكَ اَنْ تُصَلِّيَ عَلى مُحَمَّد وَآلِ مُحَمَّد وَاْنَ تُعْتِقَ رَقَبَتي مِنَ النّارِ وَاَنْ تُخْرِجَني مِنَ الدُّنْيا سالِماً وَتُدْخِلَنِي الْجَنَّةَ آمِناً وَاَنْ تَجْعَلَ دُعآئي اَوَّلَهُ فَلاحاً وَاَوْسَطَهُ نَجاحاً وَآخِرَهُ صَلاحاً اِنَّكََ أنْتَ عَلاّمُ الْغُيُوبِ | ||||
हिंदी तर्जुमा : ऐ अल्लाह! मै तेरे पोशीदा, मख़ज़ून, पाक और पाक करने वाले, बा-बरकत नाम के साथ सवाल करता हूँ और तेरे बुल्न्द्तर नाम और क़दीम सल्तनत के वास्ते से सायेल हूँ के ऐ अनमोल नेमतें देने वाले, ऐ कैदियों क़ो रिहाई अता करने वाले, ऐ बन्दों क़ो जहन्नम से छुटकारा देने वाले! मै तुझ से सवाल करता हूँ की मुहम्मद (स:अ:व:व) व आले मुहम्मद (अ:स) पर रहमत फ़रमा और मेरी गर्दन क़ो आग से आज़ाद कर दे और मुझे दुन्या सेसालिम ईमान के साथ ले जा, और अमन व अमान से मुझे जन्नत में दाख़िल फ़रमा और मेरी दुआ के अव्वल क़ो फ़लाह और औसत क़ो कामयाबी और आख़िर क़ो बेहतरी का मोजब बना दे! बेशक तू हर ग़ैब क़ो खूब जानता है! | ||||
(11) (तब) पढ़ें : | ||||
[ ईमाम अली अल मुर्तज़ा (अ:स) ने, अपने मानने वालों क़ो, ईस दुआ क़ो हर वाजिब नमाज़ के बाद पढ़ने की यह हिदायत दी है!] | ||||
يا مَنْ لا يَشْغَلُهُ سَمْعٌ عن سمع وَيا مَنْ لا يُغَلِّطُهُ السّائِلُونَ وَيا مَنْ لا يُبْرِمُهُ اِلْحاحُ المُلِحِّينَ اَذِقْني بَرْدَ عَفْوِكَ وَحَلاوَةَ رَحْمَتِكَ وَمَغْفِرَتِكَ | ||||
हिंदी तर्जुमा : ऐ वो (ख़ुदा) जिस के लिये एक बात सुनना दूसरी बात सुनने से माने’अ नहीं और सायेलों की कसरत ग़लती में नहीं डालती, ऐ वो ज़ात जिसे इसरार करने वालों का इसरार तंगदिल नहीं करता, अपने अफ़ु व दर-गुज़र की बदौलत मुझे अपनी रहमत व बख्शीश की लज्ज़त चखा दे!. | ||||
(ii) | ||||
اِلـهي هذه صَلاتي صَلَّيْتُها لا لحاجَة منْكَ اليْها وَلا رَغْبَة مِنْكَ فيها اِلاّ تَعْظيماً وَطاعَةً وَاِجابَةً لَكَ اِلى ما اَمَرْتَني بِهِ الـهي اِنْ كانَ فيها خَلَلٌ اَوْ نَقْصٌ مِنْ رُكُوعِها أوْ سُجُودِها فَلا تؤاخذني وَتَفَضَّلْ عَلَيَّ بِالْقَبُولِ وَالْغُفْرانِ | ||||
हिंदी तर्जुमा : ऐ अल्लाह! जो मैंने नमाज़ पढ़ी है यह न इसके लिये है की तुझे इसकी हाजत थी और न इसके लिये है की तुझे ईस में रग़बत थी, हाँ यह सिर्फ़ तेरी ताज़ीम व इता’अत और तेरे हुक्म की इत्ता’बा’अ है जो तुने मुझे दिया! ख़ुदा वंदा! अगर ईस नमाज़ में कोई ख़लल या इसके रुकू व सजूद में कुछ कमी हो तो ईस पर मेरी ग़िरफ़त न फ़रमा और इसके क़बूलियत और बख़शीश के साथ मुझ पर फज़ल व करम कर दे. | ||||
(iii) पवित्र पैग़म्बर (स:अ:व:व) ने ईमाम अली (अ:स) क़ो निम्नलिखित दुआ सिखाई थी जो की हर वाजिब नमाज़ के बाद पढ़ी जाने पर याद’दाश्त क़ो तेज़ करती है: | ||||
سُبْحانَ مَنْ لا يَعْتَدي عَلى أهْلِ مَمْلَكَتِهِ سُبْحانَ مَنْ لا يَأخُذُ اَهْلَ الاَْرْضِ بأَلْوانِ الْعَذابِ سُبْحانَ الرَّؤوُفِ الرَّحيمِ اَللّـهُمَّ اْجَعلْ لي في قَلْبى نُوراً وَبَصَراً وَفَهْماً وَعِلْماً اِنَّكَ عَلى كُلِّ شَي قَديرٌ | ||||
हिंदी तर्जुमा : पाक है वो ख़ुदा जो अपनी ममलेकत में रहने वालों पर ज़्यादती नहीं करता, पाक है वो ख़ुदा जो तरह तरह के अज़ाब से अहले ज़मीन पर गिरफ़्त नहीं करता, पाक है वो ख़ुदा जो मेहरबान रहम करने वाला है! ऐ माबूद! मेरे क़लब में नूर, बसीरत, फ़हम, और ईल्म क़ो जगह दे, बेशक तू हर चीज़ पर क़ुदरत रखने वाला है!. | ||||
(12) का’फ़ामी की किताब “मिस्बाह” में यह लिखा है की हर वाजिब नमाज़ के बाद नीचे लिखी हुई दुआ पढ़ना चाहिए : | ||||
اُعيذُ نَفْسي وَديني وَاَهْلي وَمالي وَوَلَدي وَاِخْواني في ديني وَما رَزَقَني رَبِّي وَخَواتيمَ عَمَلي وَمَنْ يَعْنيني اَمْرُهُ بِاللهِ الْواحِدِ الاَحَدِ الصَّمَدِ الَّذي لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ وَلَمْ يَكُنْ لَهُ كُفواً اَحَدٌ وَبِرَبِّ الْفَلَقِ مِنْ شَرِّ ما خَلَقَ وَمِنْ شَرِّ غاسِق اِذا وَقَبَ وَمِنْ شَرِّ النَّفّاثاتِ فِي الْعُقَدْ وَمِنْ شَرِّ حاسِد اِذا حَسَدَ وَبِرَبِّ النّاسِ مَلِكِ النّاسِ إلـهِ النّاسِ مِنْ شَرِّ الْوَسْواسِ الْخَنّاسِ الَّذى يُوَسْوِسُ في صُدُورِ النّاسِ مِنَ الْجِنَّةِ وَالنّاسِ | ||||
हिंदी तर्जुमा : अपने नफ़स, अपने दीन, अपने अहल, अपने माल, अपनी औलाद, अपने दीनी भाइयों और अपने रब के दिए हुए रिज़क़, अपने अमाल के अंजाम और जिस किसी से त’आलुक़ रखता हूँ ईन सब क़ो खुदाये वाहिद व यकता-ए-व-बे-नेयाज़ की पनाह में देता हूँ की जिस ने न किसी क़ो जनाऔर न जना गया और न कोई इसका हमसर है, मै इनको सुबह के मालिक की पनाह में देता हूँ, हर ईस चीज़ के शर से जो इसने पैदा की और अँधेरी रात के शर से जब छा जाए! गिरोहों के फूंकने वालों के शर से और हासिद के शर से जब वो हसद करे! मै ईन सबको इंसानों के रब, इंसानों के बादशाह, इंसानों के माबूद की पनाह में देता हूँ! शैतान के वसूसों के शर से जो लोगों के दिलों में वासूसे डालता है! ख्वाह जीनों में से हों या इंसानों में से हों! | ||||
(13) नीचे लिखी हुई दुआ हर वाजिब नमाज़ के बाद पढ़ें : | ||||
रसूले अकरम (स:अ:व:व) की हदीस में इरशाद हुआ है क़ो जो भी शख्स अपने गुनाह क़ो ईस दुन्या में पोशीदा रखना चाहता है और चाहता है की क़यामत के दिन उसके ईन गुनाहों का हिसाब भी न किया जाए तो अपनी वाजिब नमाज़ों के बाद यह दुआ पढ़े! | ||||
اَللّـهُمَّ إنَّ مَغْفِرَتَكَ اَرْجى مِنْ عَمَلى وَاِنَّ رَحْمَتِكَ أوْسَعُ مِنْ ذَنْبي اَللّـهُمَّ إن كانَ ذَنبي عِنْدَكَ عَظيماً فَعَفْوُكَ اَعْظَمُ مِنْ ذَنْبي اَللّـهُمَّ إنْ لَمْ اَكُنْ أهْلاً أنْ اَبْلُغَ رَحْمَتُكَ فرحمتك اَهْلٌ اَنْ تَبْلُغَني وَتَسَعَني لاَِنَّها وَسِعَتْ كُلَّ شَيْء بِرَحْمَتِكَ يا اَرْحَمَ الرّاحِمينَ | ||||
हिंदी तर्जुमा : ऐ अल्लाह! तेरी बख्शीश मेरे उम्मीद से ज़्यादा उम्मीद अफज़ा है और तेरी रहमत मेरे गुनाह से ज़्यादा वसी’अ है! इलाही अगर तेरे नज़दीक मेरा गुनाह अज़ीम है तो तेरा अफ़ू मेरे गुनाह से अज़ीम’तर है, इलाही अगर मै तेरे रहमत तक पहुँचने का अहल नहीं तो तेरी रहमत ज़रूर मुझ तक और मुझ पर छा जाने की अहल है क्योंकि ईस ने तेरे करम से, हर चीज़ क़ो घेरा हुआ है! ऐ सब से बढ़ कर रहम करने वाले! | ||||
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